तेल अवीव – शिमोन पेरेज़़ के इज़रायल के राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने से एक साल पहले, 2006 में, माइकल बर-ज़ोहर ने अपनी पेरेज़़ की जीवनी का हिब्रू संस्करण प्रकाशित किया था। इसका शीर्षक फीनिक्स की तरह बिल्कुल सही रखा गया था: तब तक पेरेज़़ इज़रायल की राजनीति और सार्वजनिक जीवन में 60 साल से अधिक समय तक सक्रिय रह चुके थे।
पेरेज़ के कैरियर में उतार-चढ़ाव भी आते रहे थे। वे बुलंद ऊंचाइयों तक पहुंचे थे और उन्हें अपमानजनक विफलताओं का सामना करना पड़ा था - और उन्होंने कई अवतार धारण किए थे। वे इज़रायल की राष्ट्रीय सुरक्षा के नेतृत्व के स्तंभ थे, और बाद में वे ज़ोरदार शांतिदूत बन गए, इज़रायली जनता के साथ उनका संबंध हमेशा प्रेम और घृणा का बना रहा जिसने लगातार उन्हें प्रधानमंत्री निर्वाचित नहीं होने दिया लेकिन जब उनके पास वास्तविक सत्ता नहीं थी या उन्हें इसकी ज़रूरत नहीं थी तो उन्होंने उनकी प्रशंसा की।
विपरीत परिस्थितियों में विचलित हुए बिना, महत्वाकांक्षा और मिशन की भावना से प्रेरित, और अपनी प्रतिभाओं और रचनात्मकता की मदद से पेरेज़़ ने आगे बढ़ना जारी रखा। उन्होंने शिक्षा स्वयं प्राप्त की थी, वे एक जिज्ञासु पाठक, प्रबुद्ध लेखक थे, उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि वे हर कुछ वर्षों में किसी नए विचार: नैनोविज्ञान, मानव मस्तिष्क, मध्य पूर्वी आर्थिक विकास से अग्रसर और प्रेरित होते रहे थे।
वे एक दूरदृष्टा और चतुर राजनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने स्वयं को कभी भी अपने पूर्वी यूरोपीय मूल से पूरी तरह से अलग नहीं किया। 2007 में जब उनकी सत्ता की खोज और नीति निर्माण में भागीदारी समाप्त हो गई, तो 2014 तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हुए वे अपने सार्वजनिक कैरियर के शिखर पर पहुंच गए थे। एक अयोग्य पूर्ववर्ती का उत्तराधिकारी बनने के बाद उन्होंने संस्था को पुनर्स्थापित किया और देश में लोकप्रिय हो गए और अनौपचारिक वैश्विक वरिष्ठ के रूप में विदेशों में उनकी प्रशंसा होने लगी, और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वे एक अत्यंत लोकप्रिय वक्ता बन गए, और देश के झगड़ालू प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के बिल्कुल विपरीत वे शांति की अपेक्षा करनेवाले इज़रायल का प्रतीक बन गए।
पेरेज़ का समृद्ध और जटिल राजनीतिक कैरियर पांच मुख्य चरणों से गुज़रा। उन्होंने 1940 के दशक के आरंभ में लेबर पार्टी और इसके युवा आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में शुरूआत की। 1946 तक उन्हें इतना अधिक वरिष्ठ समझा जाने लगा था कि पहले युद्ध के बाद यहूदी कांग्रेस के पूर्व राज्य प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में उन्हें यूरोप भेजा गया। उसके बाद उन्होंने इज़रायल के स्वतंत्रता युद्ध के दौरान इज़रायल के प्रमुख संस्थापक, डेविड बेन गुरियन के साथ रक्षा मंत्रालय में, ज्यादातर खरीद के मामले में, उनके साथ मिलकर काम करना शुरू किया और अंततः वे मंत्रालय के महानिदेशक के पद तक पहुंच गए।
उस हैसियत में, पेरेज़ युवा राज्य के रक्षा सिद्धांत के प्रणेता बन गए। एक तरह से समानांतर विदेश मंत्रालय चलाते हुए, फ्रांस के साथ मजबूत गठबंधन और सुदृढ़ सुरक्षा सहयोग स्थापित करना उनकी मुख्य उपलब्धि थी - जिसमें परमाणु प्रौद्योगिकी के संबंध में सहयोग भी शामिल है।
At a time of escalating global turmoil, there is an urgent need for incisive, informed analysis of the issues and questions driving the news – just what PS has always provided.
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1959 में, पेरेज़ पूर्णकालिक रूप से राजनीति में आ गए, और उन्होंने बेन गुरियन का लेबर पार्टी के पुराने दिग्गजों के साथ संघर्ष में समर्थन किया। बाद में, वे क्नेसेट, इज़रायल की संसद के लिए निर्वाचित हुए, और उप रक्षा मंत्री बने और बाद में कैबिनेट के पूर्ण सदस्य बन गए।
1974 में उनके कैरियर में तब एक नया पड़ाव आया, जब प्रधानमंत्री गोल्डा मीर को अक्तूबर 1973 में पराजय का सामना करने के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था जिसमें अनवर सादात की मिस्र की सेनाओं ने स्वेज नहर को सफलतापूर्वक पार कर लिया था। पेरेज़ ने अपनी उम्मीदवारी के लिए दावा किया, लेकिन वे यित्ज़ाक राबिन से बहुत कम अंतर से हार गए। मुआवजे के रूप में, राबिन ने पेरेज़ को अपनी सरकार में रक्षा मंत्री का पद दिया। बहरहाल, 1974 में उनके चुनाव लड़ने के कारण उन दोनों के बीच 21 साल तक चली कठोर प्रतिद्वंद्विता की शुरूआत हो गई थी, जो सहयोग के फलस्वरूप कम होती चली गई।
1977 में दो बार, जब राबिन को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था, उसके बाद और राबिन की हत्या कर दिए जाने के बाद 1995-1996 में, पेरेज़ अपने प्रतिद्वंद्वी के उत्तराधिकारी बने। 1984-1986 में वे राष्ट्रीय एकता सरकार में प्रधानमंत्री (एक बहुत अच्छे प्रधानमंत्री) भी रहे; लेकिन लगभग 30 वर्षों तक कोशिश करते रहने के बावजूद वे उस पद के लिए इज़रायल के मतदाताओं से कभी भी अपने पक्ष में जनादेश हासिल नहीं कर पाए जिसकी उन्हें सबसे अधिक ख्वाहिश थी।
1979 में पेरेज़ ने खुद को इज़रायल के शांति शिविर के नेता के रूप में स्थापित कर लिया, और 1980 के दशक में अपने प्रयासों को जॉर्डन पर केंद्रित किया। लेकिन, हालांकि वे 1987 में तब एक शांति समझौते के बहुत करीब पहुंच गए थे, जब उन्होंने राजा हुसैन के साथ लंदन समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन यह समझौता आरंभ हुए बिना ही विफल हो गया। 1992 में, लेबर पार्टी के सदस्य इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि पेरेज़ कोई चुनाव नहीं जीत सकते हैं, और संभवतः केवल राबिन जैसा कोई मध्यमार्गी ही जीत सकता है।
राबिन जीत गए और वे 15 साल बाद प्रधानमंत्री के पद पर दुबारा आसीन हो गए। इस बार उन्होंने रक्षा मंत्रालय खुद अपने पास रखा और पेरेज़ को विदेश मंत्रालय दिया। राबिन शांति प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए कटिबद्ध थे और उन्होंने पेरेज़ को इसमें मामूली भूमिका सौंपी। लेकिन राबिन के डिप्टी ने पेरेज़ को इस बात का अवसर दिया कि वे ओस्लो में पीएलओ के साथ दूसरे स्तर पर बातचीत को आगे बढ़ाएं, और राबिन की सहमति से उन्होंने वार्ताओं का प्रभार अपने हाथ में ले लिया, और अगस्त 1993 में इन्हें सफलतापूर्वक संपन्न किया।
यह प्रतिस्पर्धा और सहयोग का प्रमुख उदाहरण था जिस पर राबिन-पेरेज़ के संबंध बने थे। ओस्लो समझौतों को संपन्न कराने में पेरेज़ के साहस और उनकी रचनात्मकता की महत्वपूर्ण भूमिका रही; लेकिन राबिन की फौजी व्यक्ति के रूप में पहचान और सुरक्षा के प्रति सजग व्यक्ति के रूप में विश्वसनीयता के बिना, इज़रायल की जनता और राजनीतिक स्थापना इसे स्वीकार नहीं करती।
राबिन और पेरेज़ के बीच ईर्ष्यापूर्ण सहयोग 4 नवंबर 1995 तक तब तक चलता रहा जब राबिन की एक दक्षिणपंथी उग्रवादी द्वारा हत्या कर दी गई। हत्यारा पेरेज़ की हत्या कर सकता था, लेकिन उसने यह सोचा कि शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए राबिन को लक्ष्य बनाना अधिक प्रभावी तरीका होगा। राबिन का उत्तराधिकारी बनने पर, पेरेज़ ने ओस्लो के शीघ्र बाद सीरिया के साथ एक शांति समझौता संपन्न करने की कोशिश की। वे इसमें विफल रहे, समय से पहले चुनाव कराने की घोषणा की, एक खराब अभियान चलाया, और मई 1996 में नेतन्याहू से बहुत कम अंतर से हार गए।
अगले दस साल का समय पेरेज़ के लिए खुशगवार नहीं रहा। वे एहुद बराक से मुकाबले में लेबर पार्टी का नेतृत्व खो बैठे, एरियल शेरोन की नई कदीमा पार्टी और उनकी सरकार में शामिल हो गए, और उन्हें इज़रायल के दक्षिणपंथ की आलोचना और हमलों का शिकार होना पड़ा जिन्होंने उन्हें ओस्लो समझौतों के लिए दोषी ठहराया। पेरेज़ ने उस नोबेल शांति पुरस्कार को कम महत्व देना शुरू कर दिया जिसे उन्होंने ओस्लो के बाद यासर अराफात और राबिन के साथ साझा किया था। इन वर्षों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उनके कद और इज़रायल की राजनीति में उनकी स्थिति के बीच विसंगति तब साफ तौर से स्पष्ट होने लग गई थी, हालांकि 2007 में उनके राष्ट्रपति बनने पर यह दूर होने लग गई थी।
पेरेज़ एक अनुभवी, प्रतिभाशाली नेता, अच्छे वक्ता, और विचारों का स्रोत थे। लेकिन शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वे एक ऐसे इज़रायली नेता थे जिनके पास दृष्टि और संदेश था। यह उनके अंतर्राष्ट्रीय कद का राज़ था: लोग इज़रायल के नेता, यरूशलेम के व्यक्ति से यह उम्मीद करते हैं कि वह ठीक इसी तरह का दूरदर्शी व्यक्ति हो। जब देश का राजनीतिक नेतृत्व इस उम्मीद पर खरा नहीं उतरता है, तो पेरेज़ जैसा नेता इस भूमिका का निर्वाह करता है और ख्याति प्राप्त करता है।
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By choosing to side with the aggressor in the Ukraine war, President Donald Trump’s administration has effectively driven the final nail into the coffin of US global leadership. Unless Europe fills the void – first and foremost by supporting Ukraine – it faces the prospect of more chaos and conflict in the years to come.
For most of human history, economic scarcity was a constant – the condition that had to be escaped, mitigated, or rationalized. Why, then, is scarcity's opposite regarded as a problem?
asks why the absence of economic scarcity is viewed as a problem rather than a cause for celebration.
तेल अवीव – शिमोन पेरेज़़ के इज़रायल के राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने से एक साल पहले, 2006 में, माइकल बर-ज़ोहर ने अपनी पेरेज़़ की जीवनी का हिब्रू संस्करण प्रकाशित किया था। इसका शीर्षक फीनिक्स की तरह बिल्कुल सही रखा गया था: तब तक पेरेज़़ इज़रायल की राजनीति और सार्वजनिक जीवन में 60 साल से अधिक समय तक सक्रिय रह चुके थे।
पेरेज़ के कैरियर में उतार-चढ़ाव भी आते रहे थे। वे बुलंद ऊंचाइयों तक पहुंचे थे और उन्हें अपमानजनक विफलताओं का सामना करना पड़ा था - और उन्होंने कई अवतार धारण किए थे। वे इज़रायल की राष्ट्रीय सुरक्षा के नेतृत्व के स्तंभ थे, और बाद में वे ज़ोरदार शांतिदूत बन गए, इज़रायली जनता के साथ उनका संबंध हमेशा प्रेम और घृणा का बना रहा जिसने लगातार उन्हें प्रधानमंत्री निर्वाचित नहीं होने दिया लेकिन जब उनके पास वास्तविक सत्ता नहीं थी या उन्हें इसकी ज़रूरत नहीं थी तो उन्होंने उनकी प्रशंसा की।
विपरीत परिस्थितियों में विचलित हुए बिना, महत्वाकांक्षा और मिशन की भावना से प्रेरित, और अपनी प्रतिभाओं और रचनात्मकता की मदद से पेरेज़़ ने आगे बढ़ना जारी रखा। उन्होंने शिक्षा स्वयं प्राप्त की थी, वे एक जिज्ञासु पाठक, प्रबुद्ध लेखक थे, उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि वे हर कुछ वर्षों में किसी नए विचार: नैनोविज्ञान, मानव मस्तिष्क, मध्य पूर्वी आर्थिक विकास से अग्रसर और प्रेरित होते रहे थे।
वे एक दूरदृष्टा और चतुर राजनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने स्वयं को कभी भी अपने पूर्वी यूरोपीय मूल से पूरी तरह से अलग नहीं किया। 2007 में जब उनकी सत्ता की खोज और नीति निर्माण में भागीदारी समाप्त हो गई, तो 2014 तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हुए वे अपने सार्वजनिक कैरियर के शिखर पर पहुंच गए थे। एक अयोग्य पूर्ववर्ती का उत्तराधिकारी बनने के बाद उन्होंने संस्था को पुनर्स्थापित किया और देश में लोकप्रिय हो गए और अनौपचारिक वैश्विक वरिष्ठ के रूप में विदेशों में उनकी प्रशंसा होने लगी, और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वे एक अत्यंत लोकप्रिय वक्ता बन गए, और देश के झगड़ालू प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के बिल्कुल विपरीत वे शांति की अपेक्षा करनेवाले इज़रायल का प्रतीक बन गए।
पेरेज़ का समृद्ध और जटिल राजनीतिक कैरियर पांच मुख्य चरणों से गुज़रा। उन्होंने 1940 के दशक के आरंभ में लेबर पार्टी और इसके युवा आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में शुरूआत की। 1946 तक उन्हें इतना अधिक वरिष्ठ समझा जाने लगा था कि पहले युद्ध के बाद यहूदी कांग्रेस के पूर्व राज्य प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में उन्हें यूरोप भेजा गया। उसके बाद उन्होंने इज़रायल के स्वतंत्रता युद्ध के दौरान इज़रायल के प्रमुख संस्थापक, डेविड बेन गुरियन के साथ रक्षा मंत्रालय में, ज्यादातर खरीद के मामले में, उनके साथ मिलकर काम करना शुरू किया और अंततः वे मंत्रालय के महानिदेशक के पद तक पहुंच गए।
उस हैसियत में, पेरेज़ युवा राज्य के रक्षा सिद्धांत के प्रणेता बन गए। एक तरह से समानांतर विदेश मंत्रालय चलाते हुए, फ्रांस के साथ मजबूत गठबंधन और सुदृढ़ सुरक्षा सहयोग स्थापित करना उनकी मुख्य उपलब्धि थी - जिसमें परमाणु प्रौद्योगिकी के संबंध में सहयोग भी शामिल है।
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1959 में, पेरेज़ पूर्णकालिक रूप से राजनीति में आ गए, और उन्होंने बेन गुरियन का लेबर पार्टी के पुराने दिग्गजों के साथ संघर्ष में समर्थन किया। बाद में, वे क्नेसेट, इज़रायल की संसद के लिए निर्वाचित हुए, और उप रक्षा मंत्री बने और बाद में कैबिनेट के पूर्ण सदस्य बन गए।
1974 में उनके कैरियर में तब एक नया पड़ाव आया, जब प्रधानमंत्री गोल्डा मीर को अक्तूबर 1973 में पराजय का सामना करने के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था जिसमें अनवर सादात की मिस्र की सेनाओं ने स्वेज नहर को सफलतापूर्वक पार कर लिया था। पेरेज़ ने अपनी उम्मीदवारी के लिए दावा किया, लेकिन वे यित्ज़ाक राबिन से बहुत कम अंतर से हार गए। मुआवजे के रूप में, राबिन ने पेरेज़ को अपनी सरकार में रक्षा मंत्री का पद दिया। बहरहाल, 1974 में उनके चुनाव लड़ने के कारण उन दोनों के बीच 21 साल तक चली कठोर प्रतिद्वंद्विता की शुरूआत हो गई थी, जो सहयोग के फलस्वरूप कम होती चली गई।
1977 में दो बार, जब राबिन को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था, उसके बाद और राबिन की हत्या कर दिए जाने के बाद 1995-1996 में, पेरेज़ अपने प्रतिद्वंद्वी के उत्तराधिकारी बने। 1984-1986 में वे राष्ट्रीय एकता सरकार में प्रधानमंत्री (एक बहुत अच्छे प्रधानमंत्री) भी रहे; लेकिन लगभग 30 वर्षों तक कोशिश करते रहने के बावजूद वे उस पद के लिए इज़रायल के मतदाताओं से कभी भी अपने पक्ष में जनादेश हासिल नहीं कर पाए जिसकी उन्हें सबसे अधिक ख्वाहिश थी।
1979 में पेरेज़ ने खुद को इज़रायल के शांति शिविर के नेता के रूप में स्थापित कर लिया, और 1980 के दशक में अपने प्रयासों को जॉर्डन पर केंद्रित किया। लेकिन, हालांकि वे 1987 में तब एक शांति समझौते के बहुत करीब पहुंच गए थे, जब उन्होंने राजा हुसैन के साथ लंदन समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन यह समझौता आरंभ हुए बिना ही विफल हो गया। 1992 में, लेबर पार्टी के सदस्य इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि पेरेज़ कोई चुनाव नहीं जीत सकते हैं, और संभवतः केवल राबिन जैसा कोई मध्यमार्गी ही जीत सकता है।
राबिन जीत गए और वे 15 साल बाद प्रधानमंत्री के पद पर दुबारा आसीन हो गए। इस बार उन्होंने रक्षा मंत्रालय खुद अपने पास रखा और पेरेज़ को विदेश मंत्रालय दिया। राबिन शांति प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए कटिबद्ध थे और उन्होंने पेरेज़ को इसमें मामूली भूमिका सौंपी। लेकिन राबिन के डिप्टी ने पेरेज़ को इस बात का अवसर दिया कि वे ओस्लो में पीएलओ के साथ दूसरे स्तर पर बातचीत को आगे बढ़ाएं, और राबिन की सहमति से उन्होंने वार्ताओं का प्रभार अपने हाथ में ले लिया, और अगस्त 1993 में इन्हें सफलतापूर्वक संपन्न किया।
यह प्रतिस्पर्धा और सहयोग का प्रमुख उदाहरण था जिस पर राबिन-पेरेज़ के संबंध बने थे। ओस्लो समझौतों को संपन्न कराने में पेरेज़ के साहस और उनकी रचनात्मकता की महत्वपूर्ण भूमिका रही; लेकिन राबिन की फौजी व्यक्ति के रूप में पहचान और सुरक्षा के प्रति सजग व्यक्ति के रूप में विश्वसनीयता के बिना, इज़रायल की जनता और राजनीतिक स्थापना इसे स्वीकार नहीं करती।
राबिन और पेरेज़ के बीच ईर्ष्यापूर्ण सहयोग 4 नवंबर 1995 तक तब तक चलता रहा जब राबिन की एक दक्षिणपंथी उग्रवादी द्वारा हत्या कर दी गई। हत्यारा पेरेज़ की हत्या कर सकता था, लेकिन उसने यह सोचा कि शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए राबिन को लक्ष्य बनाना अधिक प्रभावी तरीका होगा। राबिन का उत्तराधिकारी बनने पर, पेरेज़ ने ओस्लो के शीघ्र बाद सीरिया के साथ एक शांति समझौता संपन्न करने की कोशिश की। वे इसमें विफल रहे, समय से पहले चुनाव कराने की घोषणा की, एक खराब अभियान चलाया, और मई 1996 में नेतन्याहू से बहुत कम अंतर से हार गए।
अगले दस साल का समय पेरेज़ के लिए खुशगवार नहीं रहा। वे एहुद बराक से मुकाबले में लेबर पार्टी का नेतृत्व खो बैठे, एरियल शेरोन की नई कदीमा पार्टी और उनकी सरकार में शामिल हो गए, और उन्हें इज़रायल के दक्षिणपंथ की आलोचना और हमलों का शिकार होना पड़ा जिन्होंने उन्हें ओस्लो समझौतों के लिए दोषी ठहराया। पेरेज़ ने उस नोबेल शांति पुरस्कार को कम महत्व देना शुरू कर दिया जिसे उन्होंने ओस्लो के बाद यासर अराफात और राबिन के साथ साझा किया था। इन वर्षों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उनके कद और इज़रायल की राजनीति में उनकी स्थिति के बीच विसंगति तब साफ तौर से स्पष्ट होने लग गई थी, हालांकि 2007 में उनके राष्ट्रपति बनने पर यह दूर होने लग गई थी।
पेरेज़ एक अनुभवी, प्रतिभाशाली नेता, अच्छे वक्ता, और विचारों का स्रोत थे। लेकिन शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वे एक ऐसे इज़रायली नेता थे जिनके पास दृष्टि और संदेश था। यह उनके अंतर्राष्ट्रीय कद का राज़ था: लोग इज़रायल के नेता, यरूशलेम के व्यक्ति से यह उम्मीद करते हैं कि वह ठीक इसी तरह का दूरदर्शी व्यक्ति हो। जब देश का राजनीतिक नेतृत्व इस उम्मीद पर खरा नहीं उतरता है, तो पेरेज़ जैसा नेता इस भूमिका का निर्वाह करता है और ख्याति प्राप्त करता है।