सिडनी – नवंबर 1965 में अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन को सबसे पहली सरकारी रिपोर्ट सौंपी गई थी जिसमें बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधनों को जलाने से हो सकने वाले ख़तरों की चेतावनी दी गई थी। राजनीति में पचास वर्ष का समय लंबा अरसा होता है, इसलिए यह उल्लेखनीय है कि उसके बाद से कामकाज को यथावत चलाते रहने के संभावित ख़तरों से निपटने के लिए कितना कम काम किया गया है।
जॉनसन की वैज्ञानिक सलाहकार समिति ने आश्चर्यजनक रूप से भविष्यवाणी वाली भाषा में यह चेतावनी दी थी कि पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते रहने से दुनिया का तापमान बढ़ेगा जिससे हिम शिखर पिघल जाएँगे और सागर स्तर तेज़ी से बढ़ जाएँगे। वैज्ञानिकों ने आगाह किया था कि “इनसान अनजाने में व्यापक भूभौतिकीय प्रयोग कर रहा है, वह उन जीवाश्म ईंधनों को कुछ ही पीढ़ियों में जला रहा है जो पिछले 50 करोड़ वर्षों में धरती में धीरे-धीरे संचित हुए थे...कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से जलवायु में जो बदलाव आएँगे वे मानव जाति की दृष्टि से घातक होंगे।”
समिति की दूरदर्शिता आश्चर्यजनक नहीं हैः ग्रीन हाउस प्रभाव के अस्तित्व की जानकारी विज्ञान को तब से है जब 1824 में फ्रांसीसी भौतिकीविद् जोसेफ़ फ़ोरियर ने सुझाया था कि धरती का वातावरण ऊष्मा को रोक कर तापरोधक की तरह काम कर रहा है, जो अन्यथा वातावरण से बाहर निकल जाती। और 1859 में आयरिश भौतिकीविद् जॉन टिंडॉल ने प्रयोगशाला में प्रयोग किए जिनसे कार्बन डाइऑक्साइड के तापक प्रभाव का निदर्शन किया था, जिससे प्ररेणा लेकर स्वीडिश भौतिकीविद् और नोबल पुरस्कार विजेता स्वेंटी अर्हेनियस ने भविष्यवाणी की कि कोयला जलाने से धरती गरम होगी – जिसे उन्होंने संभावित सकारात्मक घटनाक्रम के रूप में देखा था।
जॉनसन के सलाहकार उतने आशावादी नहीं थे। उनकी रिपोर्ट में सटीक ढंग से यह भविष्यवाणी की गई थी कि बीसवीं शताब्दी तक वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग 25% जितनी बढ़ जाएगी (वास्तव में यह 26% बढ़ गई)। आज कार्बन डाइऑक्साइड की वातावरणीय सांद्रता औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की तुलना में 40% अधिक है – जो पिछले 10 लाख वर्षों के दौरान सबसे अधिक है, जैसा कि हमें अंटार्कटिक की बर्फ़ की खुदाई करने से पता चला है।
इसके अलावा, जॉनसन की वैज्ञानिक समिति ने इस दावे सहित कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बढ़ने के पीछे प्राकृतिक प्रक्रियाएँ हो सकती हैं, जलवायु परिवर्तन के ख़तरे से इनकार करनेवालों की इन आपत्तियों को झूठा साबित कर दिया था जिनका उपयोग आज भी किया जाता है। यह दर्शाकर कि जीवाश्म ईंधनों के कारण उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड का केवल आधा हिस्सा ही वातावरण में रहता है, समिति ने साबित किया था कि धरती ग्रीन हाउस गैसों के स्रोत के रूप में नहीं बल्कि गर्त की तरह काम करती है जो हमारे लगभग आधे उत्सर्जनों को सोख लेता है।
जॉनसन के सलाहकार जो नहीं कर सके थे – वह यह था कि वे इसके बारे में विशिष्ट भविष्यवाणी नहीं कर पाए थे कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में कितनी बढ़ोतरी दुनिया के तापमान को प्रभावित कर सकेगी; उन्होंने कहा था कि इसके लिए उन्हें पहले बेहतर मॉडल और अधिक शक्तिशाली कंप्यूटरों की ज़रूरत होगी। ये गणनाएँ अमरीकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी द्वारा तैयार की गई 1979 की अगली उल्लेखनीय रिपोर्ट, “कार्बन डाइऑक्साइड और जलवायु: वैज्ञानिक मूल्यांकन” का आधार बनीं। इसे अधिकतर रिपोर्ट के अग्रणी लेखक MIT के जूल चार्नी के नाम पर चार्नी रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है - यह सतर्क वैज्ञानिक विवेचना का प्रतिमान है।
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चार्नी की रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दुगुनी होने से धरती लगभग 3° सेल्शियस तक अधिक गरम हो जाएगी – यह ऐसी संख्या है जिसकी आज पूरी तरह से पुष्टि हो चुकी है। इसमें यह भविष्यवाणी भी की गई थी कि समुद्रों की ऊष्मा क्षमता के फलस्वरूप गरमाहट कई दशकों की देरी से आएगी। ये दोनों निष्कर्ष इन रिपोर्टों के प्रकाशन के बाद से पाई जा रही वैश्विक गरमाहट के अनुरूप हैं। इस रिपोर्ट का निष्कर्ष यह था कि “हमने प्रयास किए हैं लेकिन कोई भी उपेक्षित या कम करके आंका गया भौतिक प्रभाव नहीं ढूँढ़ पाए हैं जो वर्तमान में अनुमानित वैश्विक गरमाहट को.... नगण्य अनुपातों में कम कर सकें।” तब से, वैज्ञानिक प्रमाण और अधिक मज़बूत ही हुए हैं; इन दो आरंभिक रिपोर्टों में जो मूलभूत नतीजे निकाले गए थे, उनका 97% से अधिक जलवायुविज्ञानी समर्थन करते हैं।
और फिर भी, 50 वर्ष की बढ़ती वैज्ञानिक आम सहमति के बावजूद धरती लगातार गरम होती जा रही है। अच्छी तरह से वित्तपोषित लॉबी समूहों ने जनता के बीच संदेह के बीज बोए हैं और सफलतापूर्वक इस ख़तरे की आवश्यकता को कम करके आंका है। इसी बीच, भूराजनीति ने प्रभावी वैश्विक प्रतिक्रिया के विकास को बाधित किया है। जिन अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं का समापन नवंबर और दिसंबर में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में एक समझौते के रूप में होने की संभावना है, उनमें इसमें भाग ले रहे 195 देशों के बीच आम सहमति की आवश्यकता होने के कारण अवरोध आ गया है।
यदि कार्रवाई नहीं की गई तो अरबों लोग सूखे, फसलों के मारे जाने और चरम मौसम के दुष्परिणामों से प्रभावित होंगे। अंततः सागरों के बढ़ते जल स्तर तटीय शहरों को डुबो देंगे और सभी द्वीप राज्यों को नेस्तनाबूद कर देंगे। उन्नीसवीं सदी में जब से अभिलेख रखना शुरू हुआ है, 2005, 2010 और 2014 के वर्ष सबसे गरम वर्ष रहे हैं और निश्चित रूप से पिछले वर्ष का रिकार्ड इस वर्ष फिर टूट जाएगा।
अब समय आ गया है कि दुनिया भर के नेता 50 वर्ष की दुविधा को छोड़ दें। उन्हें पेरिस के अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिए, अपने अल्पकालिक हितों को परे रख देना चाहिए, और हमारे ग्रह पर मंडराती तबाही के ख़तरे को टालने के लिए अंततः निर्णायक ढंग से काम करना चाहिए।
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From cutting taxes to raising tariffs to eroding central-bank independence, US President-elect Donald Trump has made a wide range of economic promises, many of which threaten to blow up the deficit and fuel inflation. But powerful institutional, political, and economic constraints, together with Trump’s capriciousness, have spurred disagreement about how worried we should be.
Anti-immigration politicians like US President-elect Donald Trump frequently portray migrants as displacing native workers and straining social security systems. But studies consistently show that increased migration brings enormous economic benefits to both host and origin countries.
warns that stricter border controls often exacerbate the very problems they aim to solve.
सिडनी – नवंबर 1965 में अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन को सबसे पहली सरकारी रिपोर्ट सौंपी गई थी जिसमें बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधनों को जलाने से हो सकने वाले ख़तरों की चेतावनी दी गई थी। राजनीति में पचास वर्ष का समय लंबा अरसा होता है, इसलिए यह उल्लेखनीय है कि उसके बाद से कामकाज को यथावत चलाते रहने के संभावित ख़तरों से निपटने के लिए कितना कम काम किया गया है।
जॉनसन की वैज्ञानिक सलाहकार समिति ने आश्चर्यजनक रूप से भविष्यवाणी वाली भाषा में यह चेतावनी दी थी कि पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते रहने से दुनिया का तापमान बढ़ेगा जिससे हिम शिखर पिघल जाएँगे और सागर स्तर तेज़ी से बढ़ जाएँगे। वैज्ञानिकों ने आगाह किया था कि “इनसान अनजाने में व्यापक भूभौतिकीय प्रयोग कर रहा है, वह उन जीवाश्म ईंधनों को कुछ ही पीढ़ियों में जला रहा है जो पिछले 50 करोड़ वर्षों में धरती में धीरे-धीरे संचित हुए थे...कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से जलवायु में जो बदलाव आएँगे वे मानव जाति की दृष्टि से घातक होंगे।”
समिति की दूरदर्शिता आश्चर्यजनक नहीं हैः ग्रीन हाउस प्रभाव के अस्तित्व की जानकारी विज्ञान को तब से है जब 1824 में फ्रांसीसी भौतिकीविद् जोसेफ़ फ़ोरियर ने सुझाया था कि धरती का वातावरण ऊष्मा को रोक कर तापरोधक की तरह काम कर रहा है, जो अन्यथा वातावरण से बाहर निकल जाती। और 1859 में आयरिश भौतिकीविद् जॉन टिंडॉल ने प्रयोगशाला में प्रयोग किए जिनसे कार्बन डाइऑक्साइड के तापक प्रभाव का निदर्शन किया था, जिससे प्ररेणा लेकर स्वीडिश भौतिकीविद् और नोबल पुरस्कार विजेता स्वेंटी अर्हेनियस ने भविष्यवाणी की कि कोयला जलाने से धरती गरम होगी – जिसे उन्होंने संभावित सकारात्मक घटनाक्रम के रूप में देखा था।
जॉनसन के सलाहकार उतने आशावादी नहीं थे। उनकी रिपोर्ट में सटीक ढंग से यह भविष्यवाणी की गई थी कि बीसवीं शताब्दी तक वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग 25% जितनी बढ़ जाएगी (वास्तव में यह 26% बढ़ गई)। आज कार्बन डाइऑक्साइड की वातावरणीय सांद्रता औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की तुलना में 40% अधिक है – जो पिछले 10 लाख वर्षों के दौरान सबसे अधिक है, जैसा कि हमें अंटार्कटिक की बर्फ़ की खुदाई करने से पता चला है।
इसके अलावा, जॉनसन की वैज्ञानिक समिति ने इस दावे सहित कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बढ़ने के पीछे प्राकृतिक प्रक्रियाएँ हो सकती हैं, जलवायु परिवर्तन के ख़तरे से इनकार करनेवालों की इन आपत्तियों को झूठा साबित कर दिया था जिनका उपयोग आज भी किया जाता है। यह दर्शाकर कि जीवाश्म ईंधनों के कारण उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड का केवल आधा हिस्सा ही वातावरण में रहता है, समिति ने साबित किया था कि धरती ग्रीन हाउस गैसों के स्रोत के रूप में नहीं बल्कि गर्त की तरह काम करती है जो हमारे लगभग आधे उत्सर्जनों को सोख लेता है।
जॉनसन के सलाहकार जो नहीं कर सके थे – वह यह था कि वे इसके बारे में विशिष्ट भविष्यवाणी नहीं कर पाए थे कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में कितनी बढ़ोतरी दुनिया के तापमान को प्रभावित कर सकेगी; उन्होंने कहा था कि इसके लिए उन्हें पहले बेहतर मॉडल और अधिक शक्तिशाली कंप्यूटरों की ज़रूरत होगी। ये गणनाएँ अमरीकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी द्वारा तैयार की गई 1979 की अगली उल्लेखनीय रिपोर्ट, “कार्बन डाइऑक्साइड और जलवायु: वैज्ञानिक मूल्यांकन” का आधार बनीं। इसे अधिकतर रिपोर्ट के अग्रणी लेखक MIT के जूल चार्नी के नाम पर चार्नी रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है - यह सतर्क वैज्ञानिक विवेचना का प्रतिमान है।
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और फिर भी, 50 वर्ष की बढ़ती वैज्ञानिक आम सहमति के बावजूद धरती लगातार गरम होती जा रही है। अच्छी तरह से वित्तपोषित लॉबी समूहों ने जनता के बीच संदेह के बीज बोए हैं और सफलतापूर्वक इस ख़तरे की आवश्यकता को कम करके आंका है। इसी बीच, भूराजनीति ने प्रभावी वैश्विक प्रतिक्रिया के विकास को बाधित किया है। जिन अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं का समापन नवंबर और दिसंबर में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में एक समझौते के रूप में होने की संभावना है, उनमें इसमें भाग ले रहे 195 देशों के बीच आम सहमति की आवश्यकता होने के कारण अवरोध आ गया है।
यदि कार्रवाई नहीं की गई तो अरबों लोग सूखे, फसलों के मारे जाने और चरम मौसम के दुष्परिणामों से प्रभावित होंगे। अंततः सागरों के बढ़ते जल स्तर तटीय शहरों को डुबो देंगे और सभी द्वीप राज्यों को नेस्तनाबूद कर देंगे। उन्नीसवीं सदी में जब से अभिलेख रखना शुरू हुआ है, 2005, 2010 और 2014 के वर्ष सबसे गरम वर्ष रहे हैं और निश्चित रूप से पिछले वर्ष का रिकार्ड इस वर्ष फिर टूट जाएगा।
अब समय आ गया है कि दुनिया भर के नेता 50 वर्ष की दुविधा को छोड़ दें। उन्हें पेरिस के अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिए, अपने अल्पकालिक हितों को परे रख देना चाहिए, और हमारे ग्रह पर मंडराती तबाही के ख़तरे को टालने के लिए अंततः निर्णायक ढंग से काम करना चाहिए।