Asian city Sergi Reboredo via ZUMA Wire

अशांत समय में एशिया की प्रगति

नई दिल्‍ली — एशिया में एक नई सच्‍चाई उभरकर सामने आ रही है। हाल के दशक में एशिया की कई अर्थव्यवस्‍थाओं में तेज़ी आई है। आज विश्व के जी.डी.पी. में इस क्षेत्र का योगदान लगभग 40% है — 1990 की 25% से बढ़कर है — तथा यह क्षेत्र वैश्विक आर्थिक विकास में लगभग दो तिहाई का योगदान करता है।

बात कुछ और भी है। एशिया ने गरीबी को कम करने तथा व्यापक विकास संकेतकों को बेहतर बनाने में अभूतपूर्व प्रगति की है। गरीबी दर वर्ष 1990 में 55% से वर्ष 2010 में 21% कम हुई, वहीं शिक्षा एवं स्वास्थ्य परिणामों में भी महत्वपूर्ण सुधार आए हैं। इस प्रक्रिया में करोड़ों लोगों का जीवन बेहतर हुआ है। और भविष्य की ओर देखते हुए एशिया से अपेक्षा की जाती है कि यह औसतन 5% की वार्षिक दर से विकास करना जारी रखेगा तथा वैश्विक आर्थिक विस्तार का नेतृत्व करेगा।

लेकिन आज यह क्षेत्र नई आक स्थितियों की चुनौतियों का सामना कर रहा है। उन्नत अर्थव्यवस्‍थाओं में उत्‍साहहीन विकास के साथ, वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में जोखिम विमुखता बढ़ रही है और कमोडिटी अधोचक्र (सुपर-साइकिल) अंत की ओर बढ़ रहा है जिसमें विश्‍व अर्थव्यवस्‍था एशियाई विकास को बहुत कम शक्ति प्रदान कर रही है।

इसके साथ ही, एशिया अधिक संवहनीय विकास मॉडल की ओर अग्रसर है जिसमें धीमा विस्‍तार अंतनिर्हित है। चीन और शेष विश्‍व खासतौर पर एशिया के बीच बढ़ते संपर्कों को देखते हुए, स्पिल-ओवर इफेक्ट (प्लवन प्रभाव) महत्वपूर्ण हो जाता है। वास्तव में, चीन अब अधिकांश प्रमुख क्षेत्रीय अर्थव्‍यवस्‍थाओं, खास तौर पर पूर्वी एशिया और आसियान देशों का शीर्ष व्‍यापारिक सहयोगी बन गया है। एशिया व प्रशांत क्षेत्र के लिए अप्रैल 2016 के रीज़नल इकोनॉमिक आउटलुक में प्रकाशित होने वाले अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के नये शोध से ज्ञात होता है कि चीन की जीडीपी के प्रति मध्‍य एशियाई देशों की आर्थिक संवेदनशीलता पिछले कुछ दशकों में दो गुनी हो गई है। इसलिए चीन में मंदी आने का मतलब है कि पूरे एशिया के विकास की गति धीमी होती है।      

हाल के दशकों में एशिया की उपलब्धियां इस क्षेत्र के लोगों के कठोर परिश्रम के साथ ही साथ 1990 के उत्तरार्ध के समय से कई एशियाई सरकारों द्वारा अपनायी गई नीतियों की सुदृढ़ता को भी सत्‍यापित करती हैं, जिसमें बेहतर मौद्रिक नीतियां एवं विनिमय दर ढांचे, और अधिक अन्तरराष्‍ट्रीय रिजर्व बफर, तथा सशक्त वित्तीय क्षेत्र विनियमन एवं पर्यवेक्षण शामिल हैं। इस परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र ने बहुत विशाल मात्रा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आकर्षित किया है।

व्यापार सम्बन्धों में विस्तार होने के साथ ही साथ, समेकित आपूर्ति श्रंखलाओं के एक परिष्कृत नेटवर्क का उद्भव हुआ है, जिसने एशिया को एक प्रमुख विनिर्माण स्तंभ के साथ ही साथ सेवाओं का निर्यातक बनाने वाली स्थितियों का निर्माण किया है। अभी हाल ही में यह क्षेत्र वैश्विक वित्तीय संकट से बहुत शीघ्रता से उबरा है, जिसका श्रेय इसकी सुदृढ़ नीतियों एवं प्रचुर रिजर्व को जाता है। इन वर्षों के दौरान एशिया को सशक्त वैश्विक अनुकूल स्थ्िातियों से भी लाभ मिला है जिसमें अनुकूल बाह्य वित्तीयन स्थितियां तथा चीनी अर्थव्यवस्‍था का द्रुत विस्तार शामिल है।

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एशिया में दिखाई देती इस नई परीक्षणकारी सच्चाई के साथ, हमें इस क्षेत्र के समक्ष गहन और दीर्घकालिक ढांचागत चुनौतियों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। जनसंख्या की आयु में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है, तथा यहां तक कि जापान, कोरिया, सिंगापुर एवं थाईलैंड जैसे देशों में जनसंख्या कम भी हो रही हे, जिसके कारण संभावित विकास में कमी आ रही है तथा वित्तीय संतुलन पर दबाव पड़ रहा है।

आय असमानता भी एक प्रमुख चुनौती है। वैसे तो मलेशिया, थाईलैंड एवं फिलीपींस में आय असमानता में स्थिरता रही है या कमी आई है, परन्‍तु क्षेत्र के बहुत से हिस्सों में - विशेष तौर पर भारत एवं चीन (इसके साथ-साथ पूर्वी एशिया के अन्य भागों में - आय असमानता में वृद्धि हो रही है। बहुत से उभरते हुए बाजारों एवं विकासशील देशों में व्यापक इन्फ्रास्ट्रक्चर कमियां बनी हुई हैं, विशेष तौर पर विद्युत एवं परिवहन के क्षेत्र में। तथा क्षेत्र में अन्य स्थानों — विशेष तौर पर लघु पैसिफिक द्वीपों — पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि हो रही है।

तेजी से परिवर्तित होते हुए इस परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए बहुत से पहलुओं पर त्वरित एवं निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है। वैसे तो प्रत्येक देश की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुसार प्रतिक्रिया तैयार करने की आवश्यकता है, परन्तु कुछ अनुशंसाएं लगभग सभी देशों के लिए सहायक हो सकती हैं:

•        लगभग समग्र क्षेत्र में मुद्रास्फीति कम होने के कारण विकास सहायक मौद्रिक नीति होनी चहिए, ताकि गिरावट आने की स्थिति में उसका सामना किया जा सके।

•        विनिमय दर लचीलापन तथा लक्षित व्यापक स्तर वाली विवेकपूर्ण नीतियां (माइक्रोप्रुडेंशियल पॉलिसी) जोखिक-प्रबंधन टूलकिट का अंग होना होनी चाहिए।

•        देशों को अपनी स्थानीय एवं क्षेत्रीय बचत के एक बड़े भाग को अपनी विकास आवश्यकताओं के वित्तीयन की दिशा में प्रयोग करने के लिए अपनी वित्तीय प्रणालियों को और अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता है; उदाहरण के लिए इस क्षेत्र की ढांचागत कमियों को दूर करना अभी भी महत्वपूर्ण बना हुआ है।

•        वित्तीय नीति की सहायता के साथ ढांचागत सुधारों से आर्थिक संक्रमण एवं पुनर्संतुलन में सहायता मिलनी चाहिए जबकि संभावित विकास एवं निर्धन समाप्त करने को बढ़ावा मिलना चाहिए।

शुभ समाचार यह है कि एशिया जैसा कि हाल के वर्षों में सशक्त प्रदर्शन दर्शाया गया है, के अनुरूप ही इन चुनौतियों पर विजय प्राप्त कर सकता है तथा पिछले दो दशकों की महत्‍वपूर्ण उपलब्धियों की नींव पर भविष्य का निर्माण करना जारी रख सकता है। इसके पास संसाधन एवं श्रमशक्ति है, इसके पास बफर्स तथा लचीलापन है; तथा इसके पास और अधिक व्यापार एवं वित्तीय समेकताओं के लिए प्रचुर अवसर हैं।

इन चुनौतियों के बारे में चर्चा करने के लिए, भारत सरकार एवं आई.एम.एफ. 11 से 13 मार्च के दौरान नई दिल्‍ली में क्षेत्रीय नीतिनिर्माताओं एवं विचारकों की एक बैठक - प्रगतिशील एशिया सम्मेलन - आयोजित कर रहे हैं। भारत इस कठिन स्थिति में से उभरते हुए बाजारों में एक उज्जवल बिन्दु है — वास्तव में विश्व की सबसे तीव्र गति से विकास करती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्‍था है - तथा इस कार्यक्रम को आयोजित करने एक शुभ स्थान है।

एशियाई नीतिनिर्माताओं के साथ सम्‍मेलन करने का हमारा परस्पर लक्ष्य सुस्पष्ट है व एशिया तथा वैश्विक अर्थव्यवस्‍था के लिए महत्‍वपूर्ण है: एशिया में सुदृढ़, संवहनीय एवं समावेशी विकास जारी रखना सुनिश्चित करना, ताकि यह क्षेत्र वैश्विक विकास का एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता बना रहे।

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