सटॉकहोम– 22 अप्रैल को, दुनिया पृथ्वी दिवस की 45 वीं वर्षगाँठ मनाएगी जिसकी स्थापना 1970 में पर्यावरणीय चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए की गई थी। ये चुनौतियाँ पहले कभी इतनी अधिक और इतनी अधिक महत्वपूर्ण नहीं रही थीं। जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का क्षरण, और प्राकृतिक संसाधनों की कमी का संयोजन धरती को एक ऐसे मोड़ की ओर ले जा रहा है जिसके बाद सतत विकास और गरीबी उन्मूलन जैसे उद्देश्यों को प्राप्त करना पहले की तुलना में कहीं अधिक कठिन हो जाएगा।
1970 के बाद से, वैज्ञानिकों ने न केवल यह सीखा है कि मानव गतिविधि पृथ्वी पर पर्यावरण परिवर्तन की प्रमुख चालक है, बल्कि यह भी सीखा है कि यह धरती को इसकी प्राकृतिक सीमाओं से आगे धकेल रही है। यदि हम शीघ्र ही बड़े बदलाव नहीं करते हैं, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।
वैश्विक नेताओं ने पाँच वर्ष पहले जब इस सदी के दौरान ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2º सेल्सियस अधिक तक सीमित करने के लिए सहमति दर्शाई थी तो संभवतः उन्होंने यह मान लिया था कि यह वह उच्चतम सीमा थी जिससे ऊपर हम जलवायु परिवर्तन के अधिक विनाशकारी परिणामों को न्योता देने का जोखिम उठाते हैं। लेकिन ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जनों को कम करने के लिए कठोर कार्रवाई नहीं की गई। इसके विपरीत, उत्सर्जनों में बहुत अधिक वृद्धि हुई है; जिसके परिणामस्वरूप, पिछला वर्ष अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा था।
दुनिया अब कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जनों की शेष क्षमता को समाप्त करने की राह पर है, जो अब सिर्फ 25 वर्ष में एक लाख करोड़ टन से भी कम रह गई है। इसका परिणाम अनियंत्रणीय रूप से समुद्र स्तर का बढ़ना, विनाशकारी गर्म हवाओं का चलना, और लगातार सूखा पड़ना, जैसे भयावह परिवर्तनों के रूप में होगा, जिनके फलस्वरूप खाद्य सुरक्षा, पारिस्थितिक तंत्रों, स्वास्थ्य, और बुनियादी सुविधाओं की दृष्टि से अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि सबसे गरीब और सबसे अधिक कमज़ोर लोग इससे सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
हमें राह बदल लेनी चाहिए। यह पृथ्वी दिवस एक चेतावनी के रूप में होना चाहिए - वास्तव में यह इसका उत्प्रेरक होना चाहिए कि दुनिया को सचमुच किस चीज़ की ज़रूरत है: मज़बूत और सतत कार्रवाई। सौभाग्य से, 2015 इस तरह के बदलाव की शुरूआत के लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है।
इस वर्ष, दुनिया के नेता हमारी धरती के लिए एक नया रास्ता तैयार करने के लिए तीन बार मुलाकात करेंगे। जुलाई में, वे विकास के लिए वित्त पोषण पर सम्मेलन के लिए अदीस अबाबा, इथियोपिया में मिलेंगे। सितंबर में, वे सतत विकास लक्ष्यों का अनुमोदन करने के लिए एक बैठक आयोजित करेंगे, जिससे 2030 तक के विकास के प्रयासों का मार्गदर्शन होगा। और दिसंबर में, वे एक नए वैश्विक जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए पेरिस जाएँगे।
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इन बैठकों के परिणामों से प्राकृतिक पर्यावरण और आर्थिक वृद्धि और विकास दोनों के लिए इस पीढ़ी की विरासत का स्वरूप तय हो जाएगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था का अकार्बनीकरण करके और जलवायु परिवर्तन को सीमित करके, दुनिया के नेता नवोन्मेष की एक लहर ला सकते हैं, नए उद्योगों और रोज़गारों के सृजन का समर्थन कर सकते हैं, और व्यापक आर्थिक अवसर पैदा कर सकते हैं।
हम सभी का कर्तव्य है कि ऐसे परिणाम को प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी किए जाने की ज़रूरत हो उसे करने के लिए राजनीतिक नेताओं को प्रोत्साहित करें। जिस तरह हम अपनी सरकारों से यह माँग करते हैं कि हमारी सरकारें आतंकवाद या महामारियों से जुड़े जोखिमों के संबंध में कार्रवाई करें, उसी तरह हमें चाहिए कि हम उनपर ठोस दबाव डालें कि वे हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अभी से कार्रवाई करना आरंभ करें।
यहाँ, वैज्ञानिक समुदाय की यह विशेष जिम्मेदारी है कि वे अपने अनुसंधान और इसके संभावित प्रभावों को साझा करें। यही कारण है कि मैंने और जलवायु प्रभाव अनुसंधान पर पॉट्सडैम संस्थान, पृथ्वी संस्थान, सिंघुआ विश्वविद्यालय, और स्टॉकहोम अनुकूलनशीलता केंद्र जैसे दुनिया के अग्रणी शैक्षिक संस्थानों का प्रतिनिधित्व करनेवाली पृथ्वी लीग के 16 अन्य वैज्ञानिकों ने मिलकर "पृथ्वी वक्तव्य" जारी किया है जिसमें उस सफल वैश्विक जलवायु समझौते के आठ आवश्यक तत्व निर्धारित किए गए हैं, जिन पर दिसंबर में पेरिस में सहमति होनी है।
- सर्वप्रथम, इस समझौते में ग्लोबल वार्मिंग को 2° सेल्सियस से कम तक सीमित करने के लिए देशों की प्रतिबद्धता पर बल दिया जाना चाहिए।
- दूसरे, यह आवश्यक है कि इस समझौते में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों के लिए शेष वैश्विक सीमा की पहचान की जाए।
- तीसरे, इस समझौते में अर्थव्यवस्था में मौलिक परिवर्तन करने की नींव रखी जानी चाहिए जिसमें गहन अकार्बनीकरण की शुरूआत तुरंत कर दी जानी चाहिए ताकि 2050 तक समाज को कार्बन-रहित बनाया जा सके।
- चौथे, संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में सभी 196 देशों को एक ऐसा उत्सर्जन मार्ग तैयार करना चाहिए जो गहन अकार्बनीकरण से संगत हो, और जिसमें अमीर देश इसका नेतृत्व करें।
- पाँचवें, देशों को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में नवोन्मेष को बढ़ावा देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मौजूदा प्रौद्योगिकी संबंधी समाधानों तक सभी को पहुँच प्राप्त हो।
- छठे, सरकारों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन का समर्थन करने, और इससे जुड़े नुकसान और क्षति के संबंध में कार्रवाई करने के लिए सहमत होना चाहिए।
- सातवें, समझौते में कार्बन भंडारों और महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के लिए प्रावधानों को शामिल किया जाना चाहिए।
- आठवें, विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करने के लिए दाताओं को चाहिए कि वे अतिरिक्त सहायता उस स्तर पर प्रदान करें जो कम-से-कम मौजूदा वैश्विक विकास से तुलनीय हो।
अच्छी खबर यह है कि ये आठों उद्देश्य वास्तविक हैं और प्राप्त किए जा सकने योग्य हैं; दरअसल, कुछ प्रगति पहले से हो भी रही है। पिछले वर्ष, ऊर्जा क्षेत्र से कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (आर्थिक मंदी के अभाव में) पहली बार वर्ष-दर-वर्ष अपरिवर्तित बने रहे। और हाल ही की रिपोर्टों से पता चलता है कि ग्रीन हाउस गैसों के दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक देश चीन में भी उत्सर्जनों में 2013-2014 में वृद्धि नहीं हुई थी।
अब समय बदल रहा है। अकार्बनीकरण की शुरूआत हो चुकी है, और जीवाश्म ईंधन से मुक्त दुनिया के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है - केवल इसलिए नहीं कि इससे जलवायु परिवर्तन कम होगा, बल्कि इसलिए भी कि यह अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी वाली, लोकतांत्रिक, लचीली, स्वस्थ, और आर्थिक रूप से गतिशील होगी। यह सही समय है कि पूरी तरह से अधिक टिकाऊ, कार्बन-रहित मार्ग को अपनाया जाए।
सही वैश्विक समझौता होने पर, दुनिया को अंततः यही करना होगा। इस धरती की खातिर, और उन लोगों के लिए जो इस पर निर्भर करते हैं, आइए हम 2015 को पृथ्वी वर्ष बनाएँ।
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When comparing Ukraine’s situation in 2024 to Europe’s in 1941, Russia’s defeat seems entirely possible. But it will require the West, and the US in particular, to put aside domestic political squabbles and muster the political will to provide Ukraine with consistent and robust military and financial assistance.
compare Russia's full-scale invasion to World War II and see reason to hope – as long as aid keeps flowing.
Current debates about Israeli policy are rife with double standards, leading to absurd decisions like Germany’s recent cancellation of a pro-Palestinian gathering. By quashing legitimate speech and assembly, an Israel-aligned establishment risks inciting precisely the kind of anti-Semitism that it wants to prevent.
worries that the double standards applied on Israel’s behalf will lead to an anti-Semitic backlash.
सटॉकहोम– 22 अप्रैल को, दुनिया पृथ्वी दिवस की 45 वीं वर्षगाँठ मनाएगी जिसकी स्थापना 1970 में पर्यावरणीय चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए की गई थी। ये चुनौतियाँ पहले कभी इतनी अधिक और इतनी अधिक महत्वपूर्ण नहीं रही थीं। जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का क्षरण, और प्राकृतिक संसाधनों की कमी का संयोजन धरती को एक ऐसे मोड़ की ओर ले जा रहा है जिसके बाद सतत विकास और गरीबी उन्मूलन जैसे उद्देश्यों को प्राप्त करना पहले की तुलना में कहीं अधिक कठिन हो जाएगा।
1970 के बाद से, वैज्ञानिकों ने न केवल यह सीखा है कि मानव गतिविधि पृथ्वी पर पर्यावरण परिवर्तन की प्रमुख चालक है, बल्कि यह भी सीखा है कि यह धरती को इसकी प्राकृतिक सीमाओं से आगे धकेल रही है। यदि हम शीघ्र ही बड़े बदलाव नहीं करते हैं, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।
वैश्विक नेताओं ने पाँच वर्ष पहले जब इस सदी के दौरान ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2º सेल्सियस अधिक तक सीमित करने के लिए सहमति दर्शाई थी तो संभवतः उन्होंने यह मान लिया था कि यह वह उच्चतम सीमा थी जिससे ऊपर हम जलवायु परिवर्तन के अधिक विनाशकारी परिणामों को न्योता देने का जोखिम उठाते हैं। लेकिन ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जनों को कम करने के लिए कठोर कार्रवाई नहीं की गई। इसके विपरीत, उत्सर्जनों में बहुत अधिक वृद्धि हुई है; जिसके परिणामस्वरूप, पिछला वर्ष अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा था।
दुनिया अब कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जनों की शेष क्षमता को समाप्त करने की राह पर है, जो अब सिर्फ 25 वर्ष में एक लाख करोड़ टन से भी कम रह गई है। इसका परिणाम अनियंत्रणीय रूप से समुद्र स्तर का बढ़ना, विनाशकारी गर्म हवाओं का चलना, और लगातार सूखा पड़ना, जैसे भयावह परिवर्तनों के रूप में होगा, जिनके फलस्वरूप खाद्य सुरक्षा, पारिस्थितिक तंत्रों, स्वास्थ्य, और बुनियादी सुविधाओं की दृष्टि से अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि सबसे गरीब और सबसे अधिक कमज़ोर लोग इससे सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
हमें राह बदल लेनी चाहिए। यह पृथ्वी दिवस एक चेतावनी के रूप में होना चाहिए - वास्तव में यह इसका उत्प्रेरक होना चाहिए कि दुनिया को सचमुच किस चीज़ की ज़रूरत है: मज़बूत और सतत कार्रवाई। सौभाग्य से, 2015 इस तरह के बदलाव की शुरूआत के लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है।
इस वर्ष, दुनिया के नेता हमारी धरती के लिए एक नया रास्ता तैयार करने के लिए तीन बार मुलाकात करेंगे। जुलाई में, वे विकास के लिए वित्त पोषण पर सम्मेलन के लिए अदीस अबाबा, इथियोपिया में मिलेंगे। सितंबर में, वे सतत विकास लक्ष्यों का अनुमोदन करने के लिए एक बैठक आयोजित करेंगे, जिससे 2030 तक के विकास के प्रयासों का मार्गदर्शन होगा। और दिसंबर में, वे एक नए वैश्विक जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए पेरिस जाएँगे।
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हम सभी का कर्तव्य है कि ऐसे परिणाम को प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी किए जाने की ज़रूरत हो उसे करने के लिए राजनीतिक नेताओं को प्रोत्साहित करें। जिस तरह हम अपनी सरकारों से यह माँग करते हैं कि हमारी सरकारें आतंकवाद या महामारियों से जुड़े जोखिमों के संबंध में कार्रवाई करें, उसी तरह हमें चाहिए कि हम उनपर ठोस दबाव डालें कि वे हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अभी से कार्रवाई करना आरंभ करें।
यहाँ, वैज्ञानिक समुदाय की यह विशेष जिम्मेदारी है कि वे अपने अनुसंधान और इसके संभावित प्रभावों को साझा करें। यही कारण है कि मैंने और जलवायु प्रभाव अनुसंधान पर पॉट्सडैम संस्थान, पृथ्वी संस्थान, सिंघुआ विश्वविद्यालय, और स्टॉकहोम अनुकूलनशीलता केंद्र जैसे दुनिया के अग्रणी शैक्षिक संस्थानों का प्रतिनिधित्व करनेवाली पृथ्वी लीग के 16 अन्य वैज्ञानिकों ने मिलकर "पृथ्वी वक्तव्य" जारी किया है जिसमें उस सफल वैश्विक जलवायु समझौते के आठ आवश्यक तत्व निर्धारित किए गए हैं, जिन पर दिसंबर में पेरिस में सहमति होनी है।
- सर्वप्रथम, इस समझौते में ग्लोबल वार्मिंग को 2° सेल्सियस से कम तक सीमित करने के लिए देशों की प्रतिबद्धता पर बल दिया जाना चाहिए।
- दूसरे, यह आवश्यक है कि इस समझौते में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों के लिए शेष वैश्विक सीमा की पहचान की जाए।
- तीसरे, इस समझौते में अर्थव्यवस्था में मौलिक परिवर्तन करने की नींव रखी जानी चाहिए जिसमें गहन अकार्बनीकरण की शुरूआत तुरंत कर दी जानी चाहिए ताकि 2050 तक समाज को कार्बन-रहित बनाया जा सके।
- चौथे, संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में सभी 196 देशों को एक ऐसा उत्सर्जन मार्ग तैयार करना चाहिए जो गहन अकार्बनीकरण से संगत हो, और जिसमें अमीर देश इसका नेतृत्व करें।
- पाँचवें, देशों को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में नवोन्मेष को बढ़ावा देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मौजूदा प्रौद्योगिकी संबंधी समाधानों तक सभी को पहुँच प्राप्त हो।
- छठे, सरकारों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन का समर्थन करने, और इससे जुड़े नुकसान और क्षति के संबंध में कार्रवाई करने के लिए सहमत होना चाहिए।
- सातवें, समझौते में कार्बन भंडारों और महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के लिए प्रावधानों को शामिल किया जाना चाहिए।
- आठवें, विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करने के लिए दाताओं को चाहिए कि वे अतिरिक्त सहायता उस स्तर पर प्रदान करें जो कम-से-कम मौजूदा वैश्विक विकास से तुलनीय हो।
अच्छी खबर यह है कि ये आठों उद्देश्य वास्तविक हैं और प्राप्त किए जा सकने योग्य हैं; दरअसल, कुछ प्रगति पहले से हो भी रही है। पिछले वर्ष, ऊर्जा क्षेत्र से कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (आर्थिक मंदी के अभाव में) पहली बार वर्ष-दर-वर्ष अपरिवर्तित बने रहे। और हाल ही की रिपोर्टों से पता चलता है कि ग्रीन हाउस गैसों के दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक देश चीन में भी उत्सर्जनों में 2013-2014 में वृद्धि नहीं हुई थी।
अब समय बदल रहा है। अकार्बनीकरण की शुरूआत हो चुकी है, और जीवाश्म ईंधन से मुक्त दुनिया के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है - केवल इसलिए नहीं कि इससे जलवायु परिवर्तन कम होगा, बल्कि इसलिए भी कि यह अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी वाली, लोकतांत्रिक, लचीली, स्वस्थ, और आर्थिक रूप से गतिशील होगी। यह सही समय है कि पूरी तरह से अधिक टिकाऊ, कार्बन-रहित मार्ग को अपनाया जाए।
सही वैश्विक समझौता होने पर, दुनिया को अंततः यही करना होगा। इस धरती की खातिर, और उन लोगों के लिए जो इस पर निर्भर करते हैं, आइए हम 2015 को पृथ्वी वर्ष बनाएँ।